
यह कहानी है रिया और राहुल की, जो दिल्ली के एक छोटे से कैफे में मिले थे. रिया एक उभरती हुई लेखिका थी, जिसकी कलम से शब्द ऐसे बहते थे मानो कोई नदी शांत भाव से अपनी राह बना रही हो. राहुल एक आर्किटेक्ट था, जिसे पुरानी इमारतों और उनकी कहानियों से खास लगाव था.
एक तूफानी बारिश की शाम थी, जब रिया अपने लैपटॉप पर कहानी लिख रही थी और बाहर बिजली कड़क रही थी. कैफे में कुछ ही लोग थे, और तभी राहुल अंदर आया, बारिश से भीगा हुआ. उसकी नज़र रिया पर पड़ी, जो अपनी दुनिया में खोई हुई थी. राहुल ने कॉफी ऑर्डर की और पास की टेबल पर बैठ गया.
कुछ देर बाद, बिजली चली गई. कैफे में हल्की मोमबत्तियों की रोशनी फैल गई, जिससे माहौल और भी रोमांटिक हो गया. रिया थोड़ी घबरा गई, क्योंकि उसे अंधेरे से डर लगता था. राहुल ने यह महसूस किया और अपने फोन की टॉर्च ऑन करके रिया की तरफ बढ़ गया.
“क्या आप ठीक हैं?” उसने पूछा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी नरमी थी.
रिया ने सिर उठाया और राहुल को देखा. उसकी आँखों में एक चमक थी, जो मोमबत्ती की रोशनी में और भी खूबसूरत लग रही थी. “हाँ, बस थोड़ी…” रिया ने मुस्कुराने की कोशिश की, “मुझे अंधेरे से थोड़ा डर लगता है.”
राहुल ने हंसते हुए कहा, “कोई बात नहीं, मैं हूँ ना. और वैसे भी, अंधेरा कभी-कभी कुछ खूबसूरत कहानियों को जन्म देता है.”
उनकी बातें शुरू हो गईं. राहुल ने अपनी आर्किटेक्चर की दुनिया के किस्से सुनाए, कैसे पुरानी इमारतों में भी एक आत्मा होती है. रिया ने अपनी कहानियों के बारे में बताया, कैसे हर किरदार उसके दिल में बसता है. समय का पता ही नहीं चला. बारिश थम चुकी थी, और बिजली भी आ गई थी.
जब कैफे बंद होने का समय हुआ, तो राहुल ने रिया का हाथ थामा. “मुझे लगता है, हमारी कहानी बस शुरू हुई है,” उसने कहा.
रिया मुस्कुराई, “मुझे भी ऐसा ही लगता है.”
और फिर, उनकी प्रेम कहानी दिल्ली की गलियों में, पुराने कैफे की खुशबू में, और अनगिनत बारिश की रातों में पनपी. हर दिन वे एक-दूसरे के लिए एक नई कहानी लिखते गए, एक ऐसी कहानी जो सिर्फ उनकी थी, प्यार, विश्वास और सपनों से बुनी हुई.