
राहुल और सिया की मुलाक़ात किसी फ़िल्मी कहानी की तरह नहीं हुई थी। न कॉलेज का कैंपस था, न बारिश में छतरी के नीचे रोमांस। दोनों की मुलाक़ात हुई थी एक सामान्य-सी जगह पर — लाइब्रेरी में।
राहुल एक साधारण-सा लड़का था, इंजीनियरिंग का स्टूडेंट। पढ़ाई में अच्छा था लेकिन दिल से बहुत ही भावुक। वहीं सिया मेडिकल की तैयारी कर रही थी। वह आत्मविश्वासी, तेज-तर्रार और खूबसूरत थी।
उस दिन राहुल किताब ढूंढ रहा था, हाथ बढ़ाकर जैसे ही उसने शेल्फ से बुक निकालनी चाही, वही किताब सिया ने भी पकड़ ली। दोनों के हाथ एक साथ किताब पर पड़े और कुछ पल को दोनों की आँखें टकराईं।
“ये किताब मुझे चाहिए,” सिया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
“लेकिन मैं पहले आया था,” राहुल ने हिचकिचाते हुए कहा।
दोनों के बीच छोटी-सी बहस हुई, और अंत में उन्होंने तय किया कि किताब को बारी-बारी से पढ़ेंगे। यही बहाना उनकी दोस्ती की शुरुआत बना।
दोस्ती से मोहब्बत तक
लाइब्रेरी के उस छोटे-से वाकये ने धीरे-धीरे एक रिश्ता बना दिया। अब राहुल हर दिन लाइब्रेरी सिर्फ इस उम्मीद में जाता कि सिया मिलेगी।
सिया भी अब उसे नोटिस करने लगी थी। दोनों कॉफ़ी शॉप में मिलने लगे, पढ़ाई के नोट्स शेयर करने लगे, और कभी-कभी एक-दूसरे को छुपकर निहारने लगे।
राहुल दिल से सिया को पसंद करने लगा था, लेकिन कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। उसे डर था कि कहीं दोस्ती टूट न जाए।
पहला इज़हार
एक दिन कैंपस के गार्डन में दोनों बैठे थे। मौसम भी कुछ खास था – हल्की-सी बारिश हो रही थी, ठंडी हवा बह रही थी। राहुल ने हिम्मत जुटाई और कहा:
“सिया, तुमसे एक बात कहनी है… शायद सुनकर तुम नाराज़ हो जाओ, लेकिन मैं अब और नहीं रोक सकता।”
सिया चुप रही। उसकी आँखों में उत्सुकता थी।
“मैं… मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, सिया। शायद ये दोस्ती से ज़्यादा है।”
कुछ पल की खामोशी के बाद सिया ने गहरी साँस ली और मुस्कुराते हुए कहा:
“राहुल, मुझे पहले से ही अंदाज़ा था। सच कहूँ तो… मैं भी तुम्हें पसंद करती हूँ।”
उस पल राहुल का दिल जैसे आसमान छू गया। दोनों की आँखों में चमक थी और होंठों पर मुस्कान।
मोहब्बत के सुनहरे दिन
इसके बाद उनकी ज़िंदगी बदल गई। हर शाम साथ बिताना, छोटे-छोटे सरप्राइज़, देर रात फोन पर बातें करना — सब कुछ एक सपने जैसा लग रहा था।
राहुल हर छोटी बात पर सिया को हंसाने की कोशिश करता, और सिया राहुल का हर सपना सुनकर उसे पूरा करने का हौसला देती।
दोनों के लिए मोहब्बत अब सिर्फ अहसास नहीं, बल्कि जीने का कारण बन चुकी थी।
ज़िम्मेदारियों का सच
लेकिन कहानी हमेशा सपनों जैसी नहीं होती। सिया के पिता बहुत सख्त थे। उनका मानना था कि पढ़ाई पूरी होने तक रिश्तों के बारे में सोचना भी ठीक नहीं। दूसरी तरफ राहुल का परिवार भी चाहता था कि वह पहले अपने करियर पर ध्यान दे।
धीरे-धीरे रिश्ते पर दबाव बढ़ने लगा। मुलाक़ातें कम हो गईं, बातें छोटी हो गईं। सिया मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेकर दूसरे शहर चली गई, और राहुल नौकरी की तलाश में जुट गया।
आखिरी मुलाक़ात
दो साल बाद, अचानक राहुल को सिया का मैसेज आया —
“क्या तुम मुझसे मिल सकते हो? मैं कल शहर आ रही हूँ।”
राहुल का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। अगले दिन दोनों उसी गार्डन में मिले, जहाँ पहली बार राहुल ने अपने दिल की बात कही थी।
सिया की आँखों में आँसू थे।
“राहुल, मैं तुमसे हमेशा प्यार करती रहूँगी। लेकिन पापा ने मेरे लिए रिश्ता तय कर दिया है। मैं मजबूर हूँ…”
राहुल ने काँपती आवाज़ में कहा:
“क्या तुम खुश हो, सिया?”
सिया ने आँसू पोंछते हुए सिर झुका लिया — “खुश तो नहीं… लेकिन शायद यही सही है।”
उस पल राहुल ने समझ लिया कि सच्चा प्यार सिर्फ पाना नहीं होता, कभी-कभी उसे छोड़ना भी होता है।
अधूरी मोहब्बत
सालों बीत गए। राहुल एक सफल इंजीनियर बन गया, लेकिन जब भी बारिश होती, उसे वही शाम याद आ जाती जब उसने पहली बार सिया से अपने दिल की बात कही थी।
सिया भी अपनी दुनिया में व्यस्त हो गई, लेकिन उसके दिल के एक कोने में राहुल हमेशा जिंदा रहा।
दोनों की मोहब्बत शायद मुकम्मल नहीं हो पाई, लेकिन वह एहसास, वह सच्चाई, वह दोस्ती और प्यार… हमेशा ज़िंदा रहा।
✨ निष्कर्ष
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्यार हमेशा मिलना नहीं होता। कभी-कभी यह सिर्फ एक खूबसूरत याद बनकर दिल में हमेशा बस जाता है।
