
दुर्गा पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक है। माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना के साथ यह पर्व शक्ति, साहस और सच्चाई की विजय का संदेश देता है। पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, असम और त्रिपुरा में इसे सबसे भव्य रूप में मनाया जाता है, लेकिन आज यह पूरे भारत और दुनिया के कई हिस्सों में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाने लगा है।
🌸 दुर्गा पूजा का महत्व
माँ दुर्गा को शक्ति और शौर्य की देवी माना जाता है। मान्यता है कि अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी से लेकर विजयादशमी तक माता दुर्गा पृथ्वी पर आती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। यह पर्व अच्छाई पर बुराई की विजय का प्रतीक है, जब माँ दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध किया था।
🏛️ दुर्गा पूजा की परंपराएँ
महाषष्ठी (षष्ठी पूजा): देवी की प्रतिमाओं की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा होती है।
महासप्तमी: माँ दुर्गा की विशेष पूजा, नौ पत्तों (नवपत्रिका) का पूजन।
महाअष्टमी: कुमारी पूजन और महाआरती का आयोजन।
महानवमी: भक्त उपवास और हवन के साथ पूजा संपन्न करते हैं।
विजयादशमी (दशहरा): माँ दुर्गा को विदाई दी जाती है और रावण दहन के साथ अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है।
🎭 सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
दुर्गा पूजा के दौरान पूरे शहर में पंडाल सजाए जाते हैं, जिनमें कला, संस्कृति और रचनात्मकता की झलक देखने को मिलती है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलते हैं और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं। यह पर्व लोगों के बीच भाईचारे और एकता का भी संदेश देता है।
✨ वैश्विक पहचान
आज दुर्गा पूजा केवल भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और गल्फ देशों में बसे भारतीय समुदाय द्वारा भी धूमधाम से मनाई जाती है। 2021 में यूनेस्को ने इसे “Intangible Cultural Heritage of Humanity” की मान्यता दी, जिससे इसकी वैश्विक पहचान और भी मजबूत हुई।
📌 निष्कर्ष
दुर्गा पूजा केवल धार्मिक आस्था का ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक उत्सव का भी प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, सत्य और धर्म की विजय निश्चित है। माँ दुर्गा की पूजा से मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जीवन में शक्ति तथा साहस मिलता है।
