
कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसी मुलाक़ातें दे देती है, जो हमारे दिल पर हमेशा के लिए छाप छोड़ जाती हैं। यह कहानी है दिल्ली के एक कॉलेज की, जहाँ आयुष और नंदिनी की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई।
आयुष एक साधारण सा लड़का था, जो पढ़ाई में अच्छा था लेकिन भीड़ में कभी अलग नहीं दिखता था। दूसरी ओर, नंदिनी हंसमुख और आत्मविश्वासी लड़की थी। पहली बार दोनों की मुलाक़ात लाइब्रेरी में हुई, जब आयुष ने नंदिनी को ज़रूरी किताब लाकर दी। नंदिनी ने मुस्कुराते हुए “थैंक यू” कहा और उसी पल से उनके बीच एक अनकहा रिश्ता बनने लगा।
कॉलेज की कैंटीन से लेकर पार्क की बेंच तक, उनकी बातें कभी खत्म नहीं होती थीं। आयुष को नंदिनी की हंसी सबसे प्यारी लगती, वहीं नंदिनी को आयुष की ईमानदारी और सादगी आकर्षित करती थी। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के लिए अनमोल हो गए।
एक शाम, जब कॉलेज फेस्टिवल चल रहा था, आयुष ने हिम्मत जुटाकर नंदिनी से अपने दिल की बात कह दी। उसने कहा –
“नंदिनी, शायद मैं तुम्हें बहुत देर से जानता हूँ, लेकिन तुम्हारे बिना खुद को अधूरा महसूस करता हूँ।”
नंदिनी कुछ पल के लिए चुप रही, फिर मुस्कुराते हुए बोली –
“आयुष, मुझे भी तुम्हारे साथ ही अपनी ज़िंदगी पूरी लगती है।”
उस दिन से दोनों का रिश्ता और गहरा हो गया। उन्होंने छोटे-छोटे लम्हों को जीना सीखा – साथ में बारिश में भीगना, सड़क किनारे चाय पीना और बस यूं ही देर तक बातें करना।
लेकिन ज़िंदगी हर कहानी को आसान नहीं बनाती। नंदिनी के घरवालों ने उसकी शादी कहीं और तय कर दी। जब उसने आयुष को यह खबर दी, तो दोनों की आँखों में आँसू थे। नंदिनी ने कहा –
“शायद हम साथ नहीं रह पाएंगे, लेकिन तुम्हारे लिए मेरा प्यार कभी कम नहीं होगा।”
आयुष ने उसका हाथ पकड़कर जवाब दिया –
“प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं, तुम्हारी खुशी ही मेरी सबसे बड़ी जीत है।”
शादी के दिन, आयुष दूर खड़ा चुपचाप नंदिनी को देख रहा था। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन दिल में नंदिनी की मुस्कुराहट को हमेशा संजोने का वादा भी।
आज सालों बाद भी, जब आयुष उस दौर को याद करता है, तो उसे लगता है कि सच्चा प्यार वही होता है – जिसमें चाहत तो हो, लेकिन कोई स्वार्थ न हो।
